नीचभंग राजयोग (Neechabhanga Rajayoga) — सरल, स्पष्ट और प्रामाणिक

नीच (Neecha), नीचभंग (Neechabhanga) और नीचभंग राजयोग (Neechabhanga Rajayoga) पर अक्सर भ्रम रहता है। यहाँ स्पष्ट हिन्दी में—क्लासिकल शब्दों को कोष्ठक में रखते हुए—मुख्य सिद्धांत और व्यावहारिक उदाहरण दिए गए हैं।

समृद्धि का मूल सिद्धांत

परंपरागत निर्देश है: जब शुभ ग्रह (śubha graha) प्रबल हों और पाप ग्रह (pāpa graha) नियंत्रित रहें, जीवन में अवसर और सहजता बढ़ती है। यह केवल दिशा बताता है; भाव, दृष्टि (dṛṣṭi), योग और समय के साथ पढ़ना चाहिए।

शास्त्रीय संदर्भ

कई आधुनिक मत शास्त्रीय सूत्रों से मेल नहीं खाते। प्रसंगवश जोड़े गए “दोष” भी मिलते हैं। इसलिए शास्त्रीय नियम पहले, अनुभव उनके व्याख्या हेतु—यही शुद्ध पद्धति है।

अंक (Marks) की उपमा

ग्रहबल को अंक की तरह समझें:

अतः नीच का अर्थ प्रकाश/क्षमता की कमी है। सही स्थितियाँ मिलें तो यह कमी पूरित हो सकती है (नीचभंग).

दिग्निटी स्केल (Rāśi‑bāṅga)

राशि/स्थिति के अनुसार बल भिन्न‑भिन्न व्यक्त होता है:

सीख के लिए अनुमानित पैमाना: Neecha ≈ 0, Bhai ≈ 10, Sama ≈ 20, Nadī ≈ 40, Ādhi ≈ 60, Mūla‑trikoṇa ≈ 80, Uccha ≈ 100. वास्तविक फल दृष्टि, योग, विभाजक बल और समय से बदलता है।

नीचभंग vs नीचभंग राजयोग

ध्यान दें: दोनों एक नहीं हैं। राजयोग साधारणतः उच्च ग्रह संयोजन आदि जैसे कड़े मानदंड मांगता है।

नीचपङ्क (Neechapaṅka): उन्नति सहित निरस्तीकरण

कभी‑कभी नीच ग्रह केवल सम्भलता नहीं, बल्कि आगे निकल जाता है—यानी बाद के चरणों में उसके संकेत क्षेत्रों में प्रखर उन्नति दिखती है। याद रखने हेतु आप “100 से ऊपर” (~120/100) की कल्पना कर सकते हैं—यह गणित नहीं, एक स्मृति युक्ति है।

चंद्र‑केन्द्र नियम (Chandra‑kendra)

चंद्र पृथ्वी के सबसे निकट है और सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करता है। चंद्र‑केन्द्र (1, 4, 7, 10) में नीच ग्रह को एक प्रकार का “प्रकाश‑ऋण” मिलता है:

यह नियम सहायक है पर आम तौर पर अकेला नहीं चलता—अन्य नियमों के साथ पढ़ें।

अन्य प्रमुख नियम (विस्तार)

  1. राशिनाथ स्व/उच्च (Svakshetra/Uccha): नीच राशि का अधिपति स्व/उच्च में हो तो बल नीच ग्रह तक प्रवाहित होता है।
  2. राशिनाथ की दृष्टि (dṛṣṭi): अधिपति की दृष्टि नीच ग्रह को सहारा देती है।
  3. परिवर्तन (Parivartana): नीच ग्रह और राशिनाथ का स्थान‑विनिमय परिणाम सुधारता है।
  4. वर्गोत्तम (Vargottama): राशि और नवांश (Navāṃśa/D9) एक ही चिन्ह में होना स्थिरता बढ़ाता है।
  5. उच्च संयोजन: उच्च ग्रह के साथ संयोग राजयोग की दिशा में उठाता है।
  6. लग्न/चंद्र‑केन्द्र (Kendra, Chandra‑kendra): लग्न या चंद्र से 1/4/7/10 में नीच ग्रह सहायक निरस्तीकरण पाए।
  7. अनुग्रह देने वाला ग्रह चंद्र‑केन्द्र: जो ग्रह निरस्तीकरण देता है, उसका चंद्र‑केन्द्र में होना परिणाम स्थिर करता है।
  8. धातृ (Dhātri) संबंध: धातृ/धारक ग्रह से विनिमय/सम्बन्ध निरस्तीकरण मजबूत करता है।
  9. नीच‑नीच की दृष्टि: पारंपरिक संदर्भ; पूर्ण कुंडली के साथ सावधानी से पढ़ें।
  10. वक्र (Vakra): वक्र गति कुछ परम्पराओं में नीचता को घटाती है—केस‑टू‑केस देखें।
  11. विभाजक में उच्च: नवांश आदि में उच्च/बल नीचभंग को पुष्ट करता है।

उदाहरण

उदाहरण पारंपरिक स्मृति‑सहायक हैं। हमेशा संपूर्ण कुंडली‑संदर्भ में आँकें।

दशा‑भुक्ति: परिणाम कब?

बलशाली योग भी सही दशा‑भुक्ति में ही फलित होते हैं। अन्य समय पर परिणाम मन्द/विलम्बित हो सकते हैं—समय निर्धारण आवश्यक है।

सार

नीचभंग नीचता का निरस्तीकरण है; नीचभंग राजयोग परिणामों को ऊँचा उठाता है। चंद्र‑केन्द्र, स्व/उच्च अधिपति, दृष्टि, परिवर्तन, वर्गोत्तम और उच्च संयोजन—साथ‑साथ अंतिम बल गढ़ते हैं। सही समय के साथ पढ़ें ताकि भविष्यवाणी यथार्थ रहे।